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केंद्र सरकार ने शुक्रवार सुबह तीनो कृषि कानून को वापस लेने फैसला लिया है। इस कानून को वापिस लेने की प्रक्रिया का आरंभ संसद सत्र के शुरू होने पर किया जाएगा। प्रधानमंत्री के इस फैसले का स्वागत सभी किसानों ने किया। गुरु पर्व के इस त्यौहार पर प्रधानमंत्री ने सभी किसानों से धरना छोड़ घर वापसी का आग्रह किया।

संसद सत्र के आरम्भ में होगी प्रक्रिया की शुरुवात

आपको बता दे इस बिल को 17 सितंबर 2020 को लोक सभा में पास कर दिया था। इस कानून का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसल की निश्चित कीमत दिलाना था। लेकिन पंजाब से लेकर महाराष्ट्र तक कई दल इसका विरोध कर रहे थे। इस बिल के विरोध में शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया था. इसके अलावा राजधानी दिल्ली की सीमा पर भी किसानों ने इस जमकर विरोध किया और धरना प्रदर्शन किया। जगह जगह सड़को पर किसानों ने धरना देकर इसका विरोध किया।
क्या हैं कृषि बिल के मुख्य बिंदु

1. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य

इसके मुताबिक कोई भी किसान अपनी इच्छा की अनुसार फसल को किसी दूसरे राज्य खरीद और बेच भी सकते है। इसका अर्थ एपीएमसी के दायरे से बाहर भी फसलों की खरीद एवम बिक्री संभव है। साथ ही साथ इस पर किसी तरह का कोई भी कर नही लगेगा। इससे किसानों का अच्छा मुनाफा प्राप्त होगा।

2. आवश्यक वस्तु संशोधन बिल

इसके अंतर्गत जो आवश्यक वस्तु संशोधन बिल 1955 में बनाया गया था उसमें कृषि उत्पादों से स्टॉक लिमिट हटा दी जाएगी, बहुत ही ज़्यादा ज़रूरी होने पर स्टॉक लिमिट लगाई जाएगी। और उत्पादन डिस्ट्रीब्यूटर और स्टोरेज पर सरकारी नियंत्रण खत्म हो जाएगा।

3. मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक अनुबंध

इसके अंतर्गत के देश में कॉन्ट्रैक्ट कृषि को लेकर व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है। इसके अंतर्गत किसानों की फसले खराब होने पर उसकी भरपाई किसानों को नही बल्कि एग्रीमेंट करने वाली कंपनी को करनी होगी। किसान कंपनी को अपनी कीमत पर फसल बेचगे बीचोलियो का राज खत्म होगा। इससे किसानों की आय बढ़ेगी।

क्यों कर रहे है संगठन इसका विरोध?

किसान संगठनों का आरोप है कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट जगत के बड़े बड़े लोगो के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा। इस बिल के मुताबिक, सरकार आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर असाधारण परिस्थिति में ही नियंत्रण लगाएंगी।

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